Thursday 6 April 2017

कोई अलग नहीं है

कोई अलग नहीं है
लोग सब वही हैं

कुछ बेपर्दा हो आये हैं
कुछ नें नए नकाब चढ़ाय हैं
अब हम को भी हो चली है आदत इसी ज़माने की
जानबूझ कर भी नकली चहरों अब अपनाने की

वो कहता है वो मेरा है
ये उसका खुद का चेहरा है
ये तेरे चहरों का रंगसाज़ भी कितने कच्चे रंग बनाता है
नम आंखों की दो बूंदो से पूरा रंग उतर जाता है

ये किस्सा तेरा नया नहीं है
सबका है बस कहा नहीं है
तूने अब जा के ये जाना है पर फर्क क्या इस से आयगा
ये चहरों पर चहरों का सौदा एसे ही चलता जायगा

क्योंकि

कोई अलग नहीं है
लोग सब वहीं हैं
                      
                                   -आयुष द्विवेदी

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