कोई अलग नहीं है
लोग सब वही हैं
कुछ बेपर्दा हो आये हैं
कुछ नें नए नकाब चढ़ाय हैं
अब हम को भी हो चली है आदत इसी ज़माने की
जानबूझ कर भी नकली चहरों अब अपनाने की
वो कहता है वो मेरा है
ये उसका खुद का चेहरा है
ये तेरे चहरों का रंगसाज़ भी कितने कच्चे रंग बनाता है
नम आंखों की दो बूंदो से पूरा रंग उतर जाता है
ये किस्सा तेरा नया नहीं है
सबका है बस कहा नहीं है
तूने अब जा के ये जाना है पर फर्क क्या इस से आयगा
ये चहरों पर चहरों का सौदा एसे ही चलता जायगा
क्योंकि
कोई अलग नहीं है
लोग सब वहीं हैं
-आयुष द्विवेदी
This is masterpiece
ReplyDeleteThank u
DeleteTruly mesmerizing!
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