तुम तो हमेशा से मेरे खेल की सहेली थीं
ख्वाबों में आकर मेरे वो किस्से पुराने खोलती
आंख मिचौली तुमने हमसे कितनी इस दौर में खेली थी
तुम को कब बना पाया हमसफ़र मैं राह का
तुम तो हमेशा से मेरे खेल की सहेली थीं
पर चाह कर भी मन जिसको कभी न बूझ पाया
तुम वही जीवन की मेरे अनबूझी पहेली थीं
तुम को कब बना पाया हमसफ़र मैं राह का
तुम तो हमेशा से मेरे खेल की सहेली थीं
उनमे से कुछ मैं भूला कुछ ख़ुद ही मुझ को भूल गये
पर उन अनजाने चहरों में तुम सब से अलबेली थीं
तुम को कब बना पाया हमसफ़र मैं राह का
तुम तो हमेशा से मेरे खेल की सहेली थीं
साथ चला था जिनको लेकर सब आगे पीछे छूट गये
इन हालातों में भी याद तुम्हारी अब तक नई नवेली थी
तुम को कब बना पाया हमसफ़र मैं राह का
तुम तो हमेशा से मेरे खेल की सहेली थीं